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Headline Beguncodor Railway Station पश्चिम बंगाल का भूतिया रेलवे स्टेशन की रहस्यमयी कहानी

बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक साधारण जगह भी अतीत की घटनाओं के चलते रहस्यमयी बन सकती... Read More

बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक साधारण जगह भी अतीत की घटनाओं के चलते रहस्यमयी बन सकती है।

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urmila maurya Author :   Urmila Maurya

बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक साधारण जगह भी अतीत की घटनाओं के चलते रहस्यमयी बन सकती है।

 

एक स्टेशन, जो बन गया डर की पहचान

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में स्थित बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की कहानी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है। 1960 में स्थापित यह स्टेशन अब भारत के सबसे डरावने रेलवे स्टेशनों में से एक बन चुका है। अफवाहें थीं कि यहां भूत रहते हैं, जिनकी वजह से इस स्टेशन को 42 सालों के लिए बंद करना पड़ा। लेकिन क्या सच में यहां कुछ ऐसा था जिसने लोगों की जिंदगी को बदल दिया? चलिए जानते हैं इस रहस्यमय जगह की कहानी।

 

बेगुनकोडोर का आरंभ और रहस्यमयी घटनाओं की शुरुआत

1960 में खुलने के बाद, बेगुनकोडोर स्टेशन सामान्य तरीके से चल रहा था। लेकिन 1967 में एक घटना ने सब कुछ बदल दिया। एक ट्रेन के ड्राइवर को रात के समय स्टेशन पर किसी महिला की चीखें सुनाई दीं, लेकिन जब उसने बाहर झांका, तो वहां कोई नहीं था। यह घटना एक भ्रम थी या कुछ और? इसके बाद से इस स्टेशन को भूतिया मानने का सिलसिला शुरू हो गया।

एक अन्य घटना में, एक पोर्टर ने ट्रैक पर खून के छींटे देखे, लेकिन अगले ही दिन वे गायब हो गए। ये घटनाएं लोगों के मन में डर का बीज बोने लगीं और बेगुनकोडोर को एक भूतिया स्टेशन के रूप में पहचान मिलने लगी।

 

दर्दनाक मौत और भटकती आत्मा की कहानी

एक दर्दनाक हादसे ने बेगुनकोडोर की भूतिया छवि को और भी गहरा कर दिया। एक महिला यात्री, जो ट्रेन से उतरकर पानी लेने गई थी, ट्रेन चलने पर वापस चढ़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसका पैर फिसल गया और वह ट्रेन के नीचे आ गई। कुछ लोगों का मानना है कि उसकी आत्मा अब भी इस स्टेशन पर मदद मांगती नजर आती है।

 

कर्मचारियों का डर और 42 साल की वीरानी

स्टेशन पर भूतिया घटनाओं की बढ़ती कहानियों ने यहां के कर्मचारियों को भी डरा दिया। स्टेशन मास्टर की लाल झंडी गायब हो जाना, ट्रेन का बिना आदेश के स्टेशन पर रुक जाना, यात्रियों को कटा हुआ हाथ और बिना सिर का धड़ दिखना - इन सब घटनाओं ने रेलवे कर्मचारियों को भयभीत कर दिया, और उन्होंने यहां काम करने से मना कर दिया।

आखिरकार, रेलवे प्रशासन ने 42 साल के लिए इस स्टेशन को बंद कर दिया। इस दौरान, स्टेशन वीरान हो गया और इसकी भूतिया कहानियां और भी गहरी होती चली गईं।

 

पुनरुद्धार और आज की स्थिति

2009 में, लंबे इंतजार के बाद बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन को फिर से खोला गया। विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान कर इसे पुनः शुरू किया गया ताकि यहां की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त किया जा सके। आज, यह स्टेशन फिर से सामान्य रूप से चल रहा है और यहां यात्रियों का आवागमन भी हो रहा है।

 

भले ही इस स्टेशन को अब पुनः शुरू किया गया हो, लेकिन इसका भूतिया अतीत आज भी यहां के माहौल में जीवित है। लोग अब भी इसकी रहस्यमयी कहानियों पर चर्चा करते हैं और सोचते हैं - क्या वाकई यहां कुछ अलौकिक था?

बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक साधारण जगह भी अतीत की घटनाओं के चलते रहस्यमयी बन सकती है। यह स्टेशन एक अद्वितीय उदाहरण है, जो लोगों की कल्पना को सजीव करता है और हमें डर और रहस्य की दुनिया में खींच ले जाता है।

 

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